अगर कहीं मिलती बंदूक | Agar kahin milti bandook

अगर कहीं मिलती बंदूक,



अगर कहीं मिलती बंदूक,

उसको मैं करता दो टूक । 


नली निकाल, बना पिचकारी

रंग देता यह दुनिया सारी ।


कउआ बगुला जैसा होता,

बगुला होता मोर। 


लाल-लाल हो जाते तोते,

होते हरे चकोर ।


बतख नीली-नीली होती,

पीले-पीले बाज । 


एक-दूसरे का मैं फ़ौरन,

रंग बदलना आज । 


फिर जंगल के बीच खड़ा हो,

ऊँचे स्वर में गाता -


जन-गण-मन अधिनायक जय हे,

भारत भाग्य विधाता ।


- श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना 

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