बढे चलो - श्रीनाथ सिंह | Badhe Chalo - Srinath Singh

बढ़े चलो 



फूल बिछे हों या कांटें हों,

राह न अपनी छोड़ो तुम

चाहे जो विपदायें आये,

मुख को जरा न मोड़ो तुम

 

साथ रहें या रहें न साथी,

हिम्मत मगर न छोड़ो तुम

नहीं  कृपा की भिक्षा मांगो,

कर न दीन बन जोड़ो तुम

 

बस ईश्वर पर रखो भरोसा,

पाठ  प्रेम का पढ़े चलो

जब तक जान बनी हो तन में,

तब तक आगे बढ़े चलो

 

 -बालकवि श्रीनाथ सिंह

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