कबीर के दोहे | Kabir ke Dohe

 कबीर के दोहे




दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय।


जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय॥

परमात्मा जी कबीर कहते हैं कि दुख के समय सभी ईश्वर को याद करते हैं, सुख में कोई भी ईश्वर को याद नहीं करता। अगर सुख में भी ईश्वर को याद किया जाए, तो दुख हो ही क्यों ?



निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय


बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय

हमें निंदा करने वाले व्यक्ति को अपने पास रखना चाहिए। निंदक हमारे चरित्र की दुर्बलता को हमारे सामने लाता है जिससे हम अपनी कमियों को दूर कर सकते हैं। निंदक व्यक्ति बिना साबुन और पानी के हमारे चरित्र और स्वभाव को निर्मल कर देता है।


कस्तूरी कुंडल बसे मृग ढ़ूँढ़ै बन माहि।


ऐसे घटी-घटी राम हैं दुनिया जानत नाँहि॥

इस दोहे का अर्थ है कि हिरण अपनी नाभि की सुगंध से मोहित होकर उसे इधर-उधर ढूंढता रहता है, लेकिन उसे यह पता नहीं होता कि यह सुगंध उसकी नाभि से आ रही है। कबीर ने इस दोहे में हिरण को उस मनुष्य के समान माना है जो ईश्वर की खोज में दर दर भटकता है।

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