रश्मिरथी | Rashmirathi

 सच हैविपत्ति जब आती है,




सच है, विपत्ति जब आती है,

कायर को ही दहलाती है,

शूरमा नहीं विचलित होते,

क्षण एक नहीं धीरज खोते,

विघ्नों को गले लगाते हैं,

काँटों में राह बनाते हैं।

 

मुख से न कभी उफ कहते हैं,

संकट का चरण न गहते हैं,

जो आ पड़ता सब सहते हैं,

उद्योग-निरत नित रहते हैं,

शूलों का मूल नसाने को,

बढ़ खुद विपत्ति पर छाने को।

 

है कौन विघ्न ऐसा जग में,

टिक सके वीर नर के मग में

खम ठोंक ठेलता है जब नर,

पर्वत के जाते पाँव उखड़।

मानव जब जोर लगाता है,

पत्थर पानी बन जाता है।

 

गुण बड़े एक से एक प्रखर,

हैं छिपे मानवों के भीतर,

मेंहदी में जैसे लाली हो,

वर्तिका-बीच उजियाली हो।

बत्ती जो नहीं जलाता है

रोशनी नहीं वह पाता है।

- रामधारी सिंह दिनकर


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